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यही आगाज था इनका, यही अंजाम होना था!

हमको उनसे है वफा की उम्मीद जो नहीं जानते वफा क्या है...


क्या आगे बढऩे की ललक और सबकुछ हासिल करने की चाहत ने उनके इस अंजाम में भूमिका नहीं निभाई?
 
गीतिका, फिजा, भंवरी देवी, शहला मसूद और मधुमिता शुक्ला ने या तो मिर्जा गालिब का यह शेर सुना ही नहीं था, या फिर सुनकर भी अनसुना कर दिया था. वरना इससे कुछ सबक तो लेतीं. और फिर यह जानने के लिए आइंसटाइन होना जरूरी नहीं कि जिन दबंग नेताओं से उनके रिश्ते थे, वे (या उनकी प्रजाति के दूसरे नेता) ऐसे रिश्तों को किस अंजाम तक पहुंचाते हैं. शेरो-शायरी या बौद्धिक क्षमता की बात छोड़ भी दें तो कम से कम 'कॉमन सेंस'नाम की कोई चीज तो रही ही होगी इन गीतिकाओं और फिजाओं के पास. Read More


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